


अपने संस्कार और संस्कृति को न भूलें- पूज्य कापालिक बाबा,अघोर आश्रम माँ महा मैत्रायणी योगिनी जी का मना निर्वाण दिवस,अघोर आश्रम पोंडी दल्हा के प्रांगण में अघोरेश्वर भगवान राम की जननी माँ महा मैत्रायणी योगिनी जी’ का निर्वाण दिवस श्रद्धा पूर्वक
शक्ति छत्तीसगढ़ से कन्हैया गोयल की खबर
सक्ती- इस मौके पर देश के विभिन्न भागों से हजारों श्रद्धालु शामिल रहे। इस मौके पर सुबह 6 बजे से आश्रम वासियों द्वारा श्रमदान कर साफ-सफाई की गई। इसके बाद परम पूज्य कापालिक धर्म रक्षित राम जी द्वारा परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु के तैलचित्र, मां महा मैत्रायणी योगिनी जी के तैलचित्र का पूजन किया गया,आश्रम के व्यवस्थापक गोपाल राम द्वारा सफलयोनि का पाठ के पश्चात मन्दिर परिसर में हवन कुंड पर हवन किया गया। तत्पश्चात् अघोरा नां परो मंत्र का 24 घंटे का अखण्ड कीर्तन किया गया। श्रद्धालुओं एवं भक्तों ने लगभग 11.00 बजे विचार गोष्ठी का आयोजन हुआ। पूज्य बाबा ने अपने आशीवर्चन में मां महा मैत्रायणी योगिनी के जीवन से प्रेरणा लेने पर बल दिया।,माताजी दीन-दु:खी एवं उपेक्षित लोगों का उचित मार्गदर्शन करती थी। उन्होंने अपने आशीर्वचन में यह भी कहा कि हमलोग बहुत ही आसानी से अच्छी-अच्छी बातें तो करते और सुनते रहते हैं, लेकिन उन पर चलना उतना ही कठिन मालूम होता है। बुरी संगत के चलते ही हम फिर दुष्कृत्यों में लिप्त हो जाते हैं। कई लोग यहाँ आकर सुधर गए, लेकिन ऐसे भी लोग हैं जिनमें कोई सुधार नहीं हुआ। गलत संगत के दुष्प्रभाव में आकर अपने मूल स्वभाव से विरत हो जाने के चलते ही ऐसा होता है। कोई व्यक्ति दूर रहकर भी यदि महापुरुषों की वाणियों का अनुसरण किया है तो उसके व्यवहार से वह परिलक्षित होता है। उसके द्वारा अपने से बड़े-बुजुर्गो का सम्मान होता है। यदि हम स्थिर हैं तो कहीं भी जाने पर वहाँ की प्रकृति, अच्छी तरंगें हमें सबकुछ बताने लगती हैं कि यहाँ पर कैसे लोग हैं, उनके कृत्य क्या हैं। इसी तरह मनुष्य भी अच्छी संगत करके एक महान इन्सान बन जाता है और बुरी संगत में पड़कर वह अपने-आप को विनष्ट भी कर लेता है। मनुष्य सोचता है कि हम दूसरे को धोखा दे रहे हैं, ठग रहे हैं, लेकिन वह अपने-आप को ही धोखे में रखता है। हमारे कर्मों को देखकर ही बच्चों को प्रेरणा मिलती है। हम अगर अच्छे से रहेंगे, अपने बच्चों को अच्छी प्रेरणा देंगे, तो हम अपने भारतवर्ष के लिए भी अच्छा करेंगे। केवल अपने लिए ही न सोचें, अपितु अपने बड़े-छोटे परिवार के लिए भी सोचें। अपनी सोच को वृहद् करें, तभी हम अपनी संस्कृति को बचा पायेंगे। माताजी भी अपने संपर्क में आने वाली माताओं को यही शिक्षा देती थीं की आप अपने संस्कार और संस्कृति को बचाए रखें। आज के युग के हिसाब से आप आगे अवश्य बढिए, लेकिन उस आधुनिकता में लिप्त होकर अपने संस्कार और संस्कृति की तिलांजलि मत दे दीजिये। नई-नई चीजों को जानिए, अविष्कार कीजिये, नए-नए विचारों को दीजिये, जिससे हम, हमारा परिवार और हमारा देश आगे बढे। लेकिन यदि अपने संस्कार और संस्कृति को छोड़कर ऐसा करेंगे तो कहीं के नहीं रह पायेंगे। हम बार-बार महापुरुषों की वाणियों का अवलंबन लें, अपने आत्मबल को मजबूत करें, अपने को इतना सुदृढ़ कर लें कि हम गलत लोगों की तरंगों के प्रभाव में न आ पायें। शील, संयम और सतर्कता रखें। डरने वाली या मन-मस्तिष्क को तनाव में रखने वाली सतर्कता नहीं, बल्कि हमें सजग रहने की जरूरत है। पूर्व में हुई गलतियों को पुनः न दोहराने का सकल्प ले लेने से हमारे अपराधों को वह ईश्वर माफ कर देता है। ईश्वर तो अपार दयालु है, वह क्षमा, प्रेम, ममता और करुणा की मूर्ति हैं। हम अपने –आप को गर्त में न डालें, ऐसे कृत्यों को न करें जो हमारे लिए तो विनाशकारी है ही, वह परिवार, मित्र, समाज, देश और आने वाली पीढ़ी के लिए भी नुकसानदेय हो। हम गृहस्थ आश्रम में रहते हुए भी कैसे उन महापुरुषों के तद्रूप हों, इस पर अवश्य विचार करें। आज मानव समाज का विश्वव्यापी पतन हो रहा है, जिससे कि प्रकृति भी कुपित हो जा रही है। आज मनुष्य ने इतने विनाशकारी चीजों को एकत्रित कर लिया है कि यह कहीं कोई महाविनाश न करवा दे। कहा गया है कि “धर धरती का एक ही लेखा, जस बाहर तस भीतर देखा”, तो वैसे ही प्रकृति भी कुपित हो जा रही है। जो मनुष्य अच्छे कार्यों को करता है वह मृत्यु से भयभीत नहीं होता। हम ऐसा रहें, ऐसा करें की वह कलयुग हमारे लिए न हो।
आपने आश्रम के अघोर विद्या पीठ के छोटे बच्चों द्वारा वर्तमान समाज में व्याप्त कुरीतियों पर प्रस्तुत गीत एवं भजन से मानव जाति को प्रेरित होने के लिये इंगित किया। आज स्कूल कॉलेजों में केवल व्यवसायिक शिक्षा ही दी जा रही है तथा संस्कार संबंधि शिक्षा या ज्ञान विलुप्त हो गया है। इसलिये हम सभी को चाहिए कि बच्चों को घर-परिवार में संस्कार अवश्य बताए। बाहरी वातावरण के हानिकारक प्रभावों से भी बच्चों को वंचित रखने का प्रयास करें। अपने आचरण और व्यवहार से ही हम अपने घर-गृह को स्वर्ग या नर्क में परिवर्तित कर सकते हैं,इस अवसर पर आश्रम परिसर में लगभग पन्द्रह सौ महिलाओं को साड़ी वितरण किया गया एवं अकलतरा रेल्वे स्टेशन, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र अकलतरा, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बलौदा एवं ज़िला चिकित्सालय में कुल 637 महिलाओं को साड़ी, फल, दूध एवं ब्रेड टेशन परिसर में ब्रेड एवं फल वितरण किया