छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित साहित्यकार रमेश सिंघानिया के सजल संग्रह का 9 नवंबर को धर्म की नगरी मथुरा में होगा भव्य लोकार्पण, राष्ट्रीय स्तर के लोकार्पण समारोह में 80 सजल संग्रहो का एक साथ होगा लोकार्पण, पूर्व में भी सिंघानिया जी की अनेको पुस्तकों का राष्ट्रीय स्तर पर हो चुका है लोकार्पण




छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित साहित्यकार रमेश सिंघानिया के सजल संग्रह का 9 नवंबर को धर्म की नगरी मथुरा में होगा भव्य लोकार्पण, राष्ट्रीय स्तर के लोकार्पण समारोह में 80 सजल संग्रहो का एक साथ होगा लोकार्पण
शक्ति छत्तीसगढ़ से कन्हैया गोयल की खबर
सक्ति-9 नवंबर 2025 रविवार को आर. सी. ए. बालिका महाविद्यालय मथुरा में हिंदी सजल सर्जना समिति के तत्वावधान में सप्तम सजल वार्षिक महोत्सव का आयोजन किया गया है जिसमें एक साथ 80 से अधिक सजल संग्रहों का सरस्वती वंदना के साथ महालोकार्पण कार्यक्रम होगा। लोकार्पण के पश्चात सम्मान-वितरण होगा तथा भोजनोपरांत दोपहर 2.00 बजे से सायं 6.00 बजे तक अखिल भारतीय सजल कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया है। जिन सजल संग्रहों का लोकार्पण किया जाना है उनमें बाराद्वार के सजलकार रमेश सिंघानिया का चौथा सजल संग्रह “फूल से चोटिल हुआ” भी सम्मिलित है। रमेश सिंघानिया के सजल संग्रह जिसमें उनकी 108 सजलें हैं की भूमिका राष्ट्रीय कवि संगम के सक्ति के जिला सचिव व्याख्याता श्री रघुनाथ जायसवाल ने लिखी है। अपने आत्मकथ्य में रमेश सिंघानिया ने कहा है कि “सजल विधा सजलकार को एक ऐसा योद्धा बना देती है जो समाज में व्याप्त दुर्व्यवस्था से लड़ने को सदैव तत्पर हो। अपनी लेखनी के माध्यम से वह समस्त पीड़ित, शोषित और दुखी जनों की पीड़ा हरने का प्रयास करता है और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर प्रहार करने से भी नहीं चूकता।” रमेश सिंघानिया का चौथा सजल संग्रह”फूल से चोटिल हुआ” उनके पूर्व में प्रकाशित तीन सजल संग्रहों “अवसर नहीं प्रतीक्षा करता”, “दोष नहीं कुछ दर्पण का” और “आदमी पत्थर हुआ” के समान पठनीय और संग्रहणीय है। उनके इस सजल संग्रह में प्रकाशित सजलों की कुछ पंक्तियां देखिए:-
शुद्ध खोवे की मिठाई, आजकल मिलती नहीं।
दूध में देखो मलाई, आजकल मिलती नहीं।।
हुआ इंसान है बुढ़ा, हृदय फिर भी मचलता है।
दुबारा प्राप्त हो यौवन, यही अरमान पलता है।।
मिल न पायी जब टिकट कल, फूल की उसको यहाॅं पर।
आ गया वह देख लो तुम, आज पंजे की शरण है।।
वोट डालो तुम किसी भी, छाप में ऐ दोस्तो।
सब विरोधी बोलते हैं, चिन्ह दबता है कमल।।
चुपड़ कर रख माथे पर, छिपाना पाप वह चाहे।
कभी क्या ऑंख छिपती है, बताओ नारि चंचल की।।
दबदबा होता अमीरों का यहाॅं पर सब कहीं।
सब उन्हें अच्छा बताते, खोट हों चाहे सकल।।
सुत हैं आज शिकायत करते, बापू से अपने।
बापू तुमने मेरी खातिर, कुछ भी नहीं किया।।
बुरे कर्म को टाटा कर।
मत अच्छे में घाटाकर।।
अपने कद को खूब बढ़ा।
मत दूजों का नाटा कर।।





