09 लाख रुपये नहीं लेंगे कमल- कमाल कर दिया कमल ने, जन प्रतिनिधि हो तो कमल जैसा, अगर सांसद/ विधायक भी यही सोच रखें तो देश आर्थिक रूप से हो जाएगा मजबूत, जिला पंचायत उपाध्यक्ष कमल पटेल ने मानदेय राशि त्याग करने की करी बड़ी घोषणा, कमल ने कहा-पेशे से हूं वकील, वकालत से होने वाली आमदनी से चल जाता है मेरा खर्चा, पूरे शक्ति जिले में हो रही कमल के इस निर्णय की प्रशंसा




कमाल कर दिया कमल ने, जन प्रतिनिधि हो तो कमल जैसा, अगर सांसद/ विधायक भी यही सोच रखें तो देश आर्थिक रूप से हो जाएगा मजबूत, जिला पंचायत उपाध्यक्ष कमल पटेल ने मानदेय राशि त्याग करने की करी बड़ी घोषणा, कमल ने कहा-पेशे से हूं वकील, वकालत से होने वाली आमदनी से चल जाता है मेरा खर्चा
शक्ति छत्तीसगढ़ से कन्हैया गोयल की खबर
सक्ती- भारत देश में पंच से लेकर सांसद तक शासन द्वारा उनके निर्वाचन के पश्चात एक निश्चित मानदेय के रूप में राशि प्रतिमाह दी जाती है, तथा इस राशि का आकलन किया जाए तो यह अरबो-खरबो में होती है, एवं चाहे वह केंद्र शासन हो कि राज्य शासन हो आर्थिक रूप से जनप्रतिनिधियों के मानदेय एवं वेतन का बोझ इतना अधिक है, कि सरकार के खजाने पर इसका विपरीत असर पड़ता है, एवं विगत वर्षों में देखा जाए तो लोकसभा के सांसदों एवं विभिन्न राज्यों के विधायकों ने सरकारों से मांग कर अपने वेतन- भत्ते दोगुने-चौगुने बढ़वा लिए, किंतु छत्तीसगढ़ प्रदेश के शक्ति जिले के एक ऐसे जनप्रतिनिधि हैं जो की शासन से मिलने वाले अपने मानदेय को त्याग करने का फैसला ले चुके हैं, जिला पंचायत शक्ति के प्रथम जिला पंचायत उपाध्यक्ष का गौरव हासिल करने वाले डभरा क्षेत्र के एडवोकेट कमल किशोर पटेल ने पूरे 5 वर्ष में उनका जिला पंचायत सदस्य के रूप में मिलने वाले लगभग ₹900000/-रुपये की मानदेय राशि को त्याग करने का फैसला ले लिया है, तथा बाकायदा कमल किशोर पटेल ने राज्य शासन एवं संबंधित पंचायत विभाग को पत्र लिखकर कहा है कि मुझे प्रतिमाह मिलने वाली मेरी मानदेय राशि ना दी जाए तथा इस राशि का उपयोग जनहित में किया जाए एवम शासन को इस राशि का उपयोग सक्ती जिले में जरुरतमंद लोगों को सहयोग करने में हो, कमल किशोर पटेल ने बताया की उनके कार्यकाल 5 वर्षों में लगभग 9 लाख रुपये मानदेय उन्हें मिलेगा, जिसे उन्होंने नहीं लेते हुए, शासन को वापस कर इसका उपयोग क्षेत्र की गरीब माताओ व बहनों को पेंशन या अन्य किसी जनहित कार्य एवं योजना में खर्च करने हेतु आग्रह किया है। उन्होनें बताया की मैं पेशे से वकील हूं, और वकालत में इतनी कमाई हो जाती है, कि मुझे इस मानदेय की आवश्यकता नहीं है, और इस मानदेय की राशि को मैं जनता के हितों में खर्च करने के लिए, शासन को वापस किया है
जिला पंचायत उपाध्यक्ष कमल किशोर पटेल के इस फैसले का जहां लोगों ने स्वागत किया है, तो वहीं शक्ति जिले के नगरीय निकायों एवं त्रिस्तरीय पंचायतो के अनेक जन प्रतिनिधि भी कमल किशोर पटेल के इस निर्णय से प्रेरणा लेते हुए अपनी भी मिलने वाली मानदेय राशि को वापस करने का मन बना रहे हैं, तथा देखना है कि छत्तीसगढ़ प्रदेश में विगत वर्षों में तत्कालीन आईएएस कलेक्टर अमित कटारिया ने भी अपने प्रतिमाह मिलने वाले वेतन में सिर्फ ₹1/-रुपये वेतन लेने का ही निर्णय लिया था, तथा कलेक्टर को मिलने वाली वेतन की राशि तो लाखों रुपए में होती है, एवं अमित कटारिया के उस समय के निर्णय की लोगों ने प्रशंसा की थी, तथा हो सकता है शक्ति जिले के जिला पंचायत उपाध्यक्ष कमल किशोर पटेल भी अपने इस निर्णय से पूरे प्रदेश में एक मिसाल बने, किंतु ऐसा ही फैसला हमारे देश के सांसद, विधायकों को भी लेने की जरूरत है, क्योंकि आज सांसद, विधायकों को इतनी मोटी तनख्वाह मिलती है, तथा यदि कुछ सांसद, विधायक भी अपनी इस तनख्वाह का त्याग कर दें, तो न जाने उस राशि से कितने विकास के काम हो सकते हैं, वहीं पिछले कुछ वर्षों पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के बड़े अधिकारियों एवं उद्योगपतियों से गैस पर मिलने वाली सब्सिडी को भी स्वस्फूर्त छोड़ने की मांग की थी, जिस पर अनेकों लोगों ने सामने आकर अपने गैस की सब्सिडी भी छोड़ दी थी