शहरी सत्ता के लिए अब होगा संग्राम- छत्तीसगढ़ में नगरीय निकायों के चुनाव का जल्द ही बजेगा बिगुल- लोकसभा चुनाव संपन्न होते ही अब नवंबर-दिसंबर में होंगे शहरी सत्ता के चुनाव,शहरी सत्ता के लिए होगा संघर्ष,अध्यक्ष- महापौर का चुनाव हो सकता है प्रत्यक्ष प्रणाली से, शहरी क्षेत्र में विकास पड़ा है ठप्प
छत्तीसगढ़ में नगरीय निकायों के चुनाव का जल्द ही बजेगा बिगुल- लोकसभा चुनाव संपन्न होते ही अब नवंबर- दिसंबर में होंगे शहरी सत्ता के चुनाव, शहरी सत्ता के लिए होगा संघर्ष, अध्यक्ष- महापौर का चुनाव हो सकता है प्रत्यक्ष प्रणाली से
शक्ति छत्तीसगढ़ से कन्हैया गोयल की खबर
सक्ति- साल 2024 के प्रारंभ में लोकसभा चुनाव के संपन्न होने के बाद अब जल्द ही शहरी सत्ता के लिए संघर्ष का ऐलान होगा, तथा 4 जून को लोकसभा चुनाव के मतगणना परिणामो के आने के बाद निर्वाचन आयोग नगर निगम, नगर पालिका एवं नगर पंचायत के चुनाव के लिए प्रक्रिया चालू कर सकती है, तथा सूत्रों की माने तो नवंबर या दिसंबर 2024 में महापौर, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं पार्षद के लिए चुनाव हो सकते है, तथा विगत साल 2018 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार आने के बाद भूपेश बघेल ने अध्यक्ष एवं महापौर के निर्वाचन को पूर्व में होने वाली प्रत्यक्ष प्रणाली की जगह बदलकर अप्रत्यक्ष प्रणाली से कर दिया था, जिसके तहत पार्षद अध्यक्ष या महापौर चुनते थे, किंतु भारतीय जनता पार्टी ने इस प्रणाली का विरोध किया था तथा हो सकता है अब छत्तीसगढ़ में राजनैतिक परिस्थितिया बदल चुकी है राज्य में भाजपा काबिज है, एवं भारतीय जनता पार्टी अप्रत्यक्ष प्रणाली की जगह प्रत्यक्ष तरीके से चुनाव पर ज्यादा विश्वास रखती है,भाजपा का मानना है कि आम मतदाता शहरी चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अपना वोट देगा तथा प्रत्यक्ष तरीके से होने वाले चुनाव में भाजपा को सफलता मिलेगी
किंतु वर्तमान में देखा जाए तो छत्तीसगढ़ में शहरी क्षेत्र में चाहे नगर निगम हो,नगर पालिका हो,या की नगर पंचायत हो भारतीय जनता पार्टी की कोई अच्छी स्थिति नहीं है,एवं लगभग स्थान पर कांग्रेस सनार्थित जनप्रतिनिधि काबिज है, तथा छत्तीसगढ़ में 2023 में विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली सफलता के बाद भाजपा ने लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगने के ठीक पहले अनेकों नगर पालिकाओं एवं नगर पंचायत में कांग्रेस समर्थित अध्यक्षो के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर सत्ता पर काबिज होने का प्रयास किया, जिस पर भाजपा को कुछ स्थानों पर तो सफलता मिली, लेकिन अनेकों स्थानों पर भाजपा सफल नहीं हो पाई, तथा जिन स्थानों पर अध्यक्ष को हटाने में भाजपा ने सफलता हासिल की वहां आज पर्यंत तक महीनो बीत जाने के बावजूद भाजपा अपना अध्यक्ष मनोनीत नहीं कर पाई है, किंतु इस बार शहरी चुनाव में भारतीय जनता पार्टी कोई रिस्क लेना नहीं चाहती तथा छत्तीसगढ़ की विष्णु देव सरकार द्वारा शहरी क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों के बलबूते पर भाजपा इस बार निकाय चुनाव में जबरदस्त प्रदर्शन कर सकती है, किंतु भारतीय जनता पार्टी का साल 2003 से 2018 तक तत्कालीन डॉ रमन सिंह की सरकार में नगरीय निकायों में स्थिति देखी जाए तो कोई विशेष अच्छी नहीं थी, राज्य में भाजपा की सरकार होने के बावजूद नगरीय निकायों में अधिकांशत कांग्रेस का ही कब्जा रहा है, किंतु भाजपा आखिरकार शहरी क्षेत्र में आम मतदाताओं के बीच निकाय चुनाव में अपना विश्वास क्यों नहीं बना पाती, यह तो समझ से परे है
किंतु शहरी चुनाव के लिए भाजपा को जबरदस्त मेहनत करनी होगी, तथा लोकसभा चुनाव की आचार संहिता खत्म होने के बाद हो सकता है छत्तीसगढ़ नगरीय प्रशासन विकास विभाग द्वारा नगरीय निकाय में होने वाले महापौर, अध्यक्ष एवं पार्षदों के आरक्षण की प्रक्रिया भी संपन्न कराई जाए एवं अगर छत्तीसगढ़ में नगरीय निकायों में महापौर-अध्यक्ष के चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होते हैं, तो इसके लिए राज्य शासन को कैबिनेट की बैठक बुलाकर इसमें संशोधन करना होगा, तभी यह संभव होगा, किंतु अप्रत्यक्ष प्रणाली से हुए चुनाव के बाद पूरे प्रदेश में यह भी देखा गया कि नगर निगम, नगर पालिका एवं नगर पंचायत के महापौर एवं अध्यक्षों पर हमेशा तलवार लटकी रहती थी,तथा निकायों के पार्षद उन पर बहुत ज्यादा प्रेशर बनाकर अविश्वास लाने की धमकी भी देते थे, तथा अविश्वास प्रस्ताव आने के बाद पार्षदों के वोट हासिल करने के लिए बहुत ही मोलभाव चलता था, तथा लाखों रुपए के सौदे भी होते थे, किंतु प्रत्यक्ष तरीके से जीतकर आने वाले महापौर एवं अध्यक्षों के साथ यह स्थिति नहीं रहती किंतु अब यह आने वाला ही समय बताया कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार शहरी सत्ता हासिल करने के लिए कौन से तरीके अपनाती है, किंतु यह बात तो स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी के संगठन को प्रत्येक शहरी क्षेत्र में नगरीय चुनाव के लिए अभी से तैयारी चालू करनी पड़ेगी,तभी इस पर सफलता हासिल कर पाना संभव है