पुरानी एवं वर्तमान शिक्षा पद्धति पर चंद्रपुर के वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार अजीत पांडेय की अपनी बातें, अपने शब्द
सक्ति छत्तीसगढ़ से कन्हैया गोयल की खबर
सक्ति- शक्ति जिले के चंद्रपुर के प्रतिष्ठित साहित्यकार, वरिष्ठ पत्रकार तथा सामाजिक कार्यकर्ता अजीत पांडेय वर्तमान परिवेश में अपने शब्दों के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहते हैं कि परीक्षा शब्द का डर ही काफी था,और उससे भयावह था नतीजे का आना, मन में अनजानी अनिश्चितताओं के साथ संभावनाओ का एक समंदर हिलोरे लेता था,और ऐसे विषम में हम जैसे-रुकते- झुकते तीसरी क्लास स्टूडेंट हो जाते थे, बारहवीं पास 45% – 55% वाले भी बड़े सम्मानित होते थे और 55% से 60%+ वाले तो देवतुल्य ही हुआ करते थे,ग्रेस मार्क्स के साथ 33% से उत्तीर्ण छात्र – छात्रा भी उत्तीर्ण होने का आनंद ले सकते थे, पुरे क्लास के, उस जनरेशन और परीक्षा के ऐसे परिणामो से होकर आने वाली शायद अंतिम पीढ़ी के लोग है हम सहायक वाचन,क्लास छटवीं के बाद अंग्रेजी पढ़ने वाले हम ही थे,फिर बदलाव होता है.. शैक्षणिक क्रम में. शुरू से अल्फाबेट पढ़ते ग्रामर और स्पेलिंग के साथ नये पीढ़ी का.. अब परीक्षा या उसका परिणाम बच्चो से ज्यादा माँ बाप के लिये अहम हो जाता है, बच्चो की जगह माँ बाप अपने स्टेटस का आकलन करने लगते है,मिश्रा ज़ी का बेटा तो स्कुल में 99% से टॉप किया,अरे अपने अग्रवाल ज़ी लड़की तो उस स्कुल में 99.2 % लायी, अब वो 60% परसेंट वाला अभिभावक खुद को लुटा पिटा.. परीक्षा में फेल परीक्षार्थी सा महसूस करने लगता है,अब दौर है 90%+ का उस से पीछे वाले पास होकर भी मानो फेल है,पता न कैसे हमारी जनरेशन वाले उस स्कोर को हासिल करने का सोच भी न पाते थे और अमरत्व के लिये 60%+ को ही अमृत मान रखे थे.. आज की पीढ़ी देखो 80+ भी हेय समझे जाते है,और अच्छे स्कुल – कॉलेज में तो इस परसेंटेज की बाद भी इंट्रेन्स टेस्ट दे कर ही पुनः योग्यता प्रमाण देना पड़ता है.. फिर इस परसेंटेज का कौन सा जलवा रहा जाता.. क्योंकि सुनने मिलता है.. दून स्कुल जाने वाला था, जिंदल जाने वाला था.. पर सलेक्शन नं हुआ.. कितने ही वहा से पढ़.. बी.टेक, एम.टेक, एम,बीए, एम.सीए, बी.एड कर फाका कसी में लगे है.. और कभी उन्हें ऐसे अपने विचार लिखने या समझाने पड़ जाये तो परसेंटेज गया चूल्हे में.. कुल मिलाकर इस शिक्षा के अंधेपन से बाहर.. व्यक्तित्व विकास का परसेंटेज तय करें.. परीक्षा, परिणाम का भय तो हो पर परसेंटेज का खेल न होकर.. गुणवत्ता का हो.. कम से कम इतनी योग्यता तो हो की इस लिखें को समझ सके, अजीत पांडेय कहते हैं कि सभी छात्र-छात्राओं, अभिभावको को उनके बच्चो के उज्जवल भविष्य की शुभकामना और परसेंटेज के मायाजाल से बाहर आ कुशल व्यक्तित्व, सर्वांगीण विकास की कामनाओं व उस दिशा में विचार एवं अनुरोध के साथ शिक्षा प्रणाली को जीवनुपयोगी बनाने की कामना है
ग्राम्य जीवन पर अजीत के बोल– चंद्रपुर में महानदी के तट पर भी गर्मी कर रही लोगों को व्याकुल-अजित पांडेय
शक्ति-ज़ब गर्मी अकुला रही है तो वही भौतिक संसाधनों से परे प्रकृति की शीतलता मन को भाव विभोर कर देती है,ग्रामीण जन आज भी नदी किनारे रेत मे अपनी नींद लेते है तो वही बच्चे भी रेती से खेल अपना मन बहलाते है,कुछ ऐसा ही नजारा हमने अपने मोबाइल मे कैद किया..महानदी के जल को छूकर आती मस्त सरसर हवा गहरे पानी की ओर अँधियारा तो वही दूजे घाट के किनारे बल्ब का उजाला,नदी पार रिहाइसो पर और दूर बैराज के बलबों की टीम टीम खुला आसमान और नदी के बहते जल का शांत संगीत,वही किनारे पर दिन भर की भटकन, काम की थकान और ऊब, उमस से शुकुन ढूंढ़,आँखों को मिचे नींद तलासते लोग,यही तो है अहा ग्रामय जीवन