



वेदों के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी की जन्म जयंती है गुरु पूर्णिमा, मैसूर की प्रसिद्ध साहित्यकार उषा केडिया ने गुरु पूर्णिमा पर व्यक्त की अपनी भावनाएं,उषा ने कहा- गुरु बताते हमे मुक्ति द्वार
सक्ति छत्तीसगढ़ से कन्हैया गोयल की खबर
सक्ति- 3 जुलाई को वेदों के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी की जन्म जयंती को गुरु पूर्णिमा महोत्सव के रूप में जहां पूरी दुनिया में धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया गया, वहीं कर्नाटक राज्य के मैसूर शहर के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं कवियित्री श्रीमती उषा केडिया ने भी गुरु पूर्णिमा पर तथा गुरु की महत्ता पर अपनी पंक्तियों के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त की है, श्रीमती उषा केडिया कहती हैं कि
मानव मस्तिष्क पर हल चलाते, ज्ञान के पौधे फिर उस पर लगाते, अध्यात्म रूपी पानी से सींचकर, गुरु पौधे को वट वृक्ष बनाते।
इस संसार में गुरु ही एक वह है जो कमजोर को अपना हाथ थमाते, जीवन समभाव में जीना बताते, दुःख में बहे आँसुओ की धार तो, भाव हमारे वो कंचन बनाते ॥
पतित को सत्य पथ दिखाते, भीतर की यात्रा कराते, अहम् की दीवार गिराकर विचारों को निर्मल बनाते ॥
देह और आत्मा का भेद बताते, आत्मा अमर हैं यह समझाते, चौरासी के अनंत भ्रमण से मुक्त होने का रास्ता बताते ॥
03 जुलाई 2023 को गुरुपूर्णिमा पर विशेष.
गुरुपूर्णिमा की आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं…
गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को श्रद्धाभाव व उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। यह पर्व जीवन में गुरु की महत्ता को समर्पित है. सिख धर्म में भी गुरु को भगवान माना जाता इस कारण गुरु पूर्णिमा सिख धर्म का भी अहम त्यौहार बन चुका है। गुरु के त्याग और तप को समर्पित है गुरु पूर्णिमा का पावन दिनआषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाता है. भारतवर्ष में कई विद्वान गुरु हुए हैं, किन्तु महर्षि वेद व्यास प्रथम विद्वान थे, जिन्होंने सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) के चारों वेदों की व्याख्या की थी. सिख धर्म केवल एक ईश्वर और अपने दस गुरुओं की वाणी को ही जीवन का वास्तविक सत्य मानता है. सिख धर्म की एक प्रचलित कहावत निम्न है:
‘गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पांव, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए
क्या है मान्यता ?
कहा जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को आदि गुरु वेद व्यास का जन्म हुआ था. उनके सम्मान में ही आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. मगर गूढ़ अर्थों को देखना चाहिए क्योंकि आषाढ़ मास में आने वाली पूर्णिमा तो पता भी नहीं चलती है. आकाश में बादल घिरे हो सकते हैं और बहुत संभव है कि चंद्रमा के दर्शन तक न हो पाएं,बिना चंद्रमा के कैसी पूर्णिमा! कभी कल्पना की जा सकती है? चंद्रमा की चंचल किरणों के बिना तो पूर्णिमा का अर्थ ही भला क्या रहेगा. अगर किसी पूर्णिमा का जिक्र होता है तो वह शरद पूर्णिमा का होता है तो फिर शरद की पूर्णिमा को क्यों न श्रेष्ठ माना जाए क्योंकि उस दिन चंद्रमा की पूर्णता मन मोह लेती है. मगर महत्व तो आषाढ़ पूर्णिमा का ही अधिक है क्योंकि इसका विशेष महत्व है


