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अमेरिका का शटडाउन — क्या है और क्यों होता है?- बीमा एवं निवेश सलाहकार राहुल अग्रवाल की तथ्यात्मक जानकारी, सोने की कीमतों पर भी क्या होगा असर, जानिए विस्तार से

अमेरिका का शटडाउन — क्या है और क्यों होता है?- बीमा एवं निवेश सलाहकार राहुल अग्रवाल की तथ्यात्मक जानकारी, सोने की कीमतों पर भी क्या होगा असर, जानिए विस्तार से kshititech

अमेरिका का शटडाउन — क्या है और क्यों होता है?- बीमा एवं निवेश सलाहकार राहुल अग्रवाल की तथ्यात्मक जानकारी

शक्ति छत्तीसगढ़ से कन्हैया गोयल की खबर

सक्ति- छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित बीमा एवं निवेश सलाहकार राहुल अग्रवाल जांजगीर ने एक भेंटवार्ता में बताया कि गवर्नमेंट शटडाउन” तब होता है जब अमेरिका की कांग्रेस (House + Senate) और राष्ट्रपति सरकार के लिए आवश्यक बजट (appropriations) पास नहीं कर पाते हैं, जिससे सरकार को यह खर्च जारी रखने का वैधानिक अधिकार नहीं मिलता। ऐसे में “non-essential” (महत्‍वपूर्ण नहीं) गतिविधियाँ बंद हो जाती हैं, और “essential” (अनिवार्य) सेवाएँ सीमित स्तर पर ही चलती हैं।
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अमेरिका में ऐसे शटडाउन ऐतिहासिक रूप से कई बार हो चुके हैं, और उनके आर्थिक प्रभाव की प्रकृति इस पर निर्भर करती है कि वह कितने समय तक चलता है।
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संक्षिप्त रूप से, शटडाउन के दौरान:कई संघीय कर्मचारी बिना वेतन के रह जाते हैं या फर्लough (छुट्टी) पर चले जाते हैं

सरकारी विभागों की नियमित गतिविधियाँ, डेटा रिलीज़, और अनुमोदन प्रक्रियाएँ थम सकती हैं

निवेशकों में अनिश्चितता बढ़ सकती है-श्रम, उपभोक्ता और व्यवसाय गतिविधियों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दबाव पड़ सकता है,अब, इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए, हम देखेंगे कि भारतीय बाजारों को इससे नुकसान हो सकता है या फायदा।

भारत पर संभावित नुकसान

नीचे मैं उन मुख्य चैनलों को सूचीबद्ध कर रहा हूँ जिनके माध्यम से अमेरिका का शटडाउन भारतीय अर्थव्यवस्था एवं बाजारों को नकारात्मक रूप में प्रभावित कर सकता है:

01-निवेश प्रवाह में कमी (Capital Outflows / FPI रुझान)

भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) बड़े पैमाने पर सक्रिय हैं। यदि अमेरिका में मंदी की आशंका बढ़ती है या अमेरिका में राजनीतिक-आर्थिक अनिश्चितता गहरी होती है, तो निवेशक जोखिम बचने के लिए Emerging Markets (उदाहरण के लिए भारत) से पैसा निकाल सकते हैं,इस प्रकार की धन निकासी से भारतीय इक्विटी एवं बांड बाजारों पर दबाव बन सकता है, जिससे रिटर्न और वैल्यूएशन प्रभावित होंगे उदाहरणस्वरूप, हाल ही में (सितंबर 2025) भारत से एफपीआई बाहर निकलने की सूचना रही है, $2.7 अरब तक की निकासी हुई है।
Reuters यदि अमेरिकी डॉलर सुदृढ़ हो (जो जोखिम की स्थिति में अक्सर होता है), तो अन्य मुद्राओं (जैसे भारतीय रुपया) पर दबाव बनता है, जिससे करेंसी डिप्रिसिएशन (मुद्रा अवमूल्यन) हो सकती है — और यह विदेशी निवेशकों के लिए अतिरिक्त जोखिम बन जाता है

02-मुद्रा अवमूल्यन (Rupee Depreciation)

जैसा कि कहा गया, अमेरिकी डॉलर की मजबूती और भारत से पूंजी निकासी मिले-जुले दबाव डाल सकते हैं रुपये पर।
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यदि रुपया कमजोर होता है, तो भारत को विदेश से आयात (जैसे कच्चे माल, ऊर्जा, पूंजीगत सामान) महंगे होंगे, जिससे देश की लागत दबाव बढ़ सकता है और व्यापार संतुलन पर नकारात्मक असर हो सकता है।

03-निर्यात और मांग में गिरावट

भारत की अर्थव्यवस्था निर्यात पर भी निर्भर है, विशेषकर सेवा (आईटी, बीपीओ आदि) और विनिर्माण। यदि अमेरिकी सरकार की गतिविधियाँ कम हो जाएँ, तो अमेरिकी उपभोक्ता और व्यवसाय खर्च कम कर सकते हैं, जिससे भारत से वस्तु और सेवा की मांग गिर सकती है।विशेष रूप से, यदि अमेरिकी संघीय एजेंसियाँ और विभाग बंद हैं, तो नए सौदे, ठेके और भुगतान देरी हो सकते हैं — जो भारत के सेवा निर्यातकों (खासकर सरकारी संविदा आधारित) को प्रभावित कर सकते हैं।
@mathrubhumi
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उदाहरण के लिए, यदि कोई अमेरिकी विभाग भारतीय कंपनियों को तकनीकी याउपभोक्ता-आधारित सेवाएँ खरीदना बंद कर देता है या भुगतान बाधित हो जाता है, तो भारतीय फर्मों की राजस्व प्रवाह प्रभावित हो सकती है।

04-अनिश्चितता एवं जोखिम भावना (Risk Sentiment)

शटडाउन के दौरान वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता बढ़ जाती है। निवेशक “रिस्क एसेट्स” (उच्च जोखिम वाले एसेट्स जैसे इक्विटी) से “सेफ हेवन” (जैसे सोना, अमेरिकी ट्रेजरी) की ओर शिफ्ट हो सकते हैं।
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भारतीय बाजारों पर इसका सीधा प्रभाव हो सकता है — क्योंकि भारत को “उभरता बाजार” माना जाता है और ऐसी अनिश्चितता में यह पहली चुनौतियों में आता है।यदि शटडाउन लंबा चले या राजनीतिक गतिरोध गहरा हो, तो अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग पर नकारात्मक दबाव बन सकता है, जिससे ब्याज दरों और वित्तीय शर्तों पर दबाव बढ़ेगा।
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05-आर्थिक डेटा रिलीज़ में देरी / पारदर्शिता की कमी

अमेरिका के महत्वपूर्ण आर्थिक डेटा (जैसे रोजगार रिपोर्ट, श्रम डेटा, GDP आदि) शटडाउन के दौरान देरी हो सकते हैं।
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यह वैश्विक निवेशकों को अमेरिकी अर्थव्यवस्था की स्थिति का सही अनुमान लगाने में कठिनाई देगा, जिससे वे अधिक सतर्क या संरक्षित निवेश रणनीतियाँ अपनाएं। भारत सहित अन्य बाज़ारों में निवेशकों के फैसले सुस्त हो सकते हैं।

06- मुद्रास्फीति और ब्याज दर दबाव

यदि रुपये का अवमूल्यन हुआ और विदेशी सामान महंगे हो गए, तो भारत में आयातित मुद्रास्फीति (imported inflation) बढ़ सकती है – जैसे कि तेल, ईंधन, कच्चे माल आदि।यह मुद्रास्फीति दबाव भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) पर ब्याज दर बढ़ाने या नीति सख्त करने का दबाव डाल सकता है, जिससे ऋण और आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव हो सकता है।

07- वित्तीय और बैंकिंग क्षेत्र पर दबाव

यदि बाजारों में अस्थिरता बढ़े, तो बैंकों और वित्तीय संस्थानों को नकदी समस्या, लीवरेज जोखिम और क्रेडिट रिस्क का सामना करना पड़ सकता है।विशेष रूप से, यदि कंपनियों की आय प्रभावित होती है या कारोबार रुक जाता है, तो डिफॉल्ट की संभावना बढ़ सकती है, जिससे बैंकिंग सिस्टम पर तनाव बढ़ेगा।

भारत पर संभावित फायदे / अवसर

हालाँकि नुकसान की संभावनाएँ अधिक अपेक्षित हैं, पर कुछ ऐसे प्रभाव भी हो सकते हैं जो भारत या भारतीय बाजारों को लाभ पहुंचा सकते हैं। नीचे उनका विश्लेषण है:

01-विदेशी निवेश का प्रतिफराव (Flight to “Relative Safety / Emerging Markets Rotation”)

यदि वैश्विक जोखिम बढ़े और अमेरिकी मार्केट्स कमजोर हों, तो कुछ निवेशक अमेरिका की तुलना में कम प्रभावित बाज़ारों (emerging markets) में अवसर ढूंढ सकते हैं। भारत यदि अपेक्षाकृत स्थिर दिखाई दे, तो कुछ निवेश वहां रिटर्न खोज सकते हैं।जैसा कि कुछ विश्लेषकों ने कहा है, इस शटडाउन के दौरान डॉलर कमजोर हो सकता है, और इससे भारत जैसे उभरते बाज़ारों को थोड़ी राहत मिल सकती है।
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उदाहरण के लिए, Mint रिपोर्ट कहती है कि पिछली अमेरिकी शटडाउन अवधि में S&P 500 ने 10% से अधिक वृद्धि की थी और भारत का Sensex भी 0.80% ऊपर गया था।
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02-डॉलर कमजोर भारतीय आयातों पर राहत

यदि अमेरिकी डॉलर कमजोर हो जाए (जो उच्च जोखिम समय में अक्सर होता है), तो भारत के लिए विदेशी उत्पादों, कच्चे माल आदि की कीमतें सापेक्ष रूप से कम हो सकती हैं।इससे भारत के आयातकों को लागत लाभ हो सकता है, जिससे उपयुक्त क्षेत्रों में मार्जिन बढ़ सकता है।

03- नीतिगत अवसर और रोटेशन

भारत की सरकार और RBI इस स्थिति का लाभ उठा सकते हैं। यदि स्थिति स्थिर रहती है, तो भारत में निवेशकों को आकर्षित करने के लिए नीतिगत रियायतें, सुधार या सुझाव दी जा सकती है।निवेशक यदि अमेरिकी बाजारों की अनिश्चितता को देखते हुए भारत को “उभरती सुरक्षित बंदरगाह” (relatively safer emerging market) मानें, तो कुछ पूंजी भारत की ओर प्रवाहित हो सकती है।

04- सोने और सुरक्षित परिसम्पत्तियों की मांग बढ़ना

अमेरिकी शटडाउन के कारण जब बाजारों में अस्थिरता बढ़ती है, तो निवेशक “safe-haven” परिसम्पत्तियों की ओर बढ़ते हैं — जैसे सोना। भारत सोने का एक बड़ा उपभोग और निवेश बाजार है।सोने की कीमत बढ़ने से भारत में सोने की खनन, ज्वेलरी और संबंधित उद्योगों को (कम अवधि में) लाभ हो सकता है।इस स्थिति में, भारतीय निवेशकों को सोने, सोने-सम्बंधित फंड या ETFs में निवेश की ओर रुझान बढ़ सकता है।

05- अवसर निवेशकों को (Dip Buying)

यदि अमेरिकी शटडाउन के डर से भारतीय बाजारों में गिरावट होती है, तो दीर्घकालिक निवेशक इसे “डिप (मूल्य गिरावट) खरीदने” का अवसर मान सकते हैं — यदि वे मानते हैं कि भारत के फंडामेंटलแข मजबूत हैं ऐसे मामलों में, यदि गिरावट कृत्रिम या भावनात्मक हो, तो पुनरुत्थान की संभावना अधिक होती है।

स्थिति विशेष: किस हद तक असर पड़ेगा?

अमेरिका के शटडाउन का भारत पर असल प्रभाव काफी हद तक इस पर निर्भर करेगा:अवधि (Duration): यदि शटडाउन केवल कुछ दिनों या 1–2 हफ्तों के लिए रहेगा, तो असर सीमित हो सकता है। लेकिन यदि यह लंबी अवधि (सप्ताह या महीने) तक खिंचे, तो प्रभाव अधिक गंभीर हो सकता है।
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दायरा (Extent / Depth): यदि शटडाउन बड़े विभागों को प्रभावित करे, डेटा रिलीज़ लंबित हो जाएँ, या राजनीतिक गतिरोध गहरा हो, तो असर बड़ा होगा।वैश्विक आर्थिक पृष्ठभूमि: यदि वैश्विक अर्थव्यवस्था पहले ही धीमी है या अनिश्चितता बढ़ी है, तो शटडाउन असर को और बढ़ा सकता है।भारतीय आर्थिक स्थिति और नीतिगत प्रतिक्रियाएँ: यदि भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत हो (मौद्रिक नीतियाँ, बजट स्थिति, विदेशी मुद्रास्फीति नियंत्रण आदि), और सरकार/केन्द्रीय बैंक सक्रिय कदम उठाएँ, तो प्रभाव को सीमित किया जा सकता है।मनोवृत्ति और निवेशकों की धारणा (Sentiment): बाजारों पर किसी भी घटना का सीधा असर अक्सर भावना पर निर्भर करता है — यदि निवेशकों को लगता है कि अमेरिका की स्थिति जल्दी सुलझ जाएगी, तो वे टिके रहेंगे।

उदाहरण: 2018–2019 शटडाउन का भारत पर प्रभाव

एक प्रासंगिक उदाहरण है दिसंबर 2018 से जनवरी 2019 का अमेरिकी शटडाउन जो 35 दिनों तक चला।
Wikipedia

उस अवधि में, अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर अनुमान है कि लगभग $11 अरब का नुकसान हुआ, जिसमें लगभग $3 अरब की हानि स्थायी मानी गई।
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लेकिन पूँजी बाजारों पर असर अपेक्षाकृत सीमित रहा; S&P 500 ने इस अवधि में लाभ दर्ज किया।
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भारत में, कहा जाता है कि उस अवधि में Sensex ~0.80% ऊपर गया था।
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यह दिखाता है कि, यदि शटडाउन मध्यम अवधि का हो और अन्य आर्थिक कारक अनुकूल हों, तो बाजारों पर नकारात्मक प्रभाव स्वतः ही सीमित रह सकता है।

निष्कर्ष: लाभ या हानि — कौन भारी पड़ेगा?

अमेरिका का शटडाउन भारत के लिए पूरी तरह से लाभदायक या पूरी तरह से खतरनाक नहीं हो सकता — यह अधिक “संभावनाओं और दबावों का मिश्रण” है। अगर मुझे कम शब्दों में निष्कर्ष देना हो, तो मैं इसे इस तरह प्रस्तुत करूँगा:

संक्षिप्त निष्कर्ष: अमेरिका का शटडाउन भारतीय बाजारों के लिए अधिकतर नुकसान कारक प्रस्तुत करता है, विशेषतः यदि वह लंबे समय तक चले। लेकिन यदि शटडाउन अपेक्षाकृत सीमित अवधि का हो और भारत की आंतरिक स्थिति मजबूत बनी रहे, तो कुछ अवसर भी सामने आ सकते हैं।पश्चिमी, अमेरिकी आर्थिक अनिश्चितता, डॉलर की मजबूती, विदेशी निवेशकों की निकासी और मुद्रा अवमूल्यन – ये मुख्य नकारक हैं।वहीं, डॉलर की कमजोरी, सुरक्षित निवेशों की ओर पलायन, और “डिप खरीद” की प्रवृत्ति – ये संभावित लाभकारी कारक हो सकते हैं।भारत को इस तरह की स्थिति में सक्षम नीति, निर्यात संवर्द्धन, निवेश आकर्षण प्रस्ताव, और मौद्रिक नियंत्रण की रणनीति अपनानी होगी ताकि नकारात्मक प्रभाव को न्यूनतम किया जा सके

उपरोक्त संपूर्ण तथ्यात्मक जानकारियां बीमा एवम निवेश सलाहकार राहुल अग्रवाल 9826672669www.agrawalinsurance.in दोबारा एक भेंट वार्ता में दी गई है

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