अघोर आश्रम पोड़ी दल्हा अकलतरा में माँ महा मैत्रायणी योगिनी जी का मना निर्वाण दिवस, आश्रम परिसर में स्वच्छता अभियान चलाकर सेवा के हुए कार्य
शक्ति छत्तीसगढ़ से कन्हैया गोयल की खबर
सक्ति-अघोर आश्रम पोंडीदल्हा के प्रांगण में अघोरेश्वर भगवान राम की जननी माँ महा मैत्रायणी योगिनी जी’ का 32वां निर्वाण दिवस श्रद्धा एवं भक्तिमय वातावरण में मनाया गया,इस मौके पर देश के विभिन्न भागों से हजारों श्रद्धालु शामिल रहे। इस मौके पर सुबह 6 बजे से आश्रम वासियों द्वारा श्रमदान कर साफ-सफाई की गई। इसके बाद परम पूज्य कापालिक धर्म रक्षित राम जी द्वारा परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु के तैलचित्र, मां महा मैत्रायणी योगिनी जी के तैलचित्र का पूजन किया गया
आश्रम के व्यवस्थापक गोपाल राम द्वारा सफलयोनि का पाठ के पश्चात मन्दिर परिसर में हवन कुंड पर हवन किया गया। तत्पश्चात् अघोरा नां परो मंत्र का 24 घंटे का अखण्ड कीर्तन किया गया। श्रद्धालुओं एवं भक्तों ने लगभग 11.00 बजे विचार गोष्ठी का आयोजन हुआ। पूज्य बाबा ने अपने आशीवर्चन में मां महा मैत्रायणी योगिनी के जीवन से प्रेरणा लेने पर बल दिया। माताजी दीन-दु:खी एवं उपेक्षित लोगों का उचित मार्गदर्शन करती थीं
कौन है माँ महा मैत्रायणी योगिनी जी
बिहार का एक जिला है भोजपुर , जिसे लोग आरा के नाम से ज़्यादा जानते हैं इसी जिले का एक गाँव है – गुण्डी ये गाँव विश्व-विख्यात है जिसकी सबसे बड़ी वज़ह है कि ये स्थान विश्व-विख्यात औघड़ संत अघोरेश्वर भगवान राम जी यानि अघोरेश्वर महाप्रभु का जन्म-स्थान है अघोरेश्वर महाप्रभु को तो मानने वाले अघोरेश्वर, कालापति, औघड़, अघोरी, माँ-गुरू , शिव, भगवती पता नहीं कितने रूप में जानते-मानते हैं,आध्यात्म की गहराई तक खोजी प्रवित्ति के लोगों ने अपना दिमाग लगाया और भाव-जगाया तो लगा ,कि, जब ये (अघोरेश्वर महाप्रभु) सृष्टि के संचालक हैं तो इनको जन्म-देने-वाली मां कौन हैं ? निश्चित तौर पर इसका जवाब महा-प्रभु के अलावा किसी और के पास नहीं था पर लोगों का भक्ति-भाव प्रबल था, कि, ये जन्म-दायिनी कोई और नहीं बल्कि वही माँ महा मैत्रायणी योगिनी जी हैं जिन्होंने स्त्री-रूप धर कर जगत-संचालनकर्ता अघोरेश्वर महाप्रभु को जन्म दिया उसी माँ के स्त्री-रूप का महानिर्वाण दिवस हर साल 13 जनवरी को श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है।
आपने आश्रम के अघोर विद्या पीठ के छोटे बच्चों द्वारा वर्तमान समाज में व्याप्त कुरीतियों पर प्रस्तुत गीत एवं भजन से मानव जाति को प्रेरित होने के लिये इंगित किया। आज स्कूल कॉलेजों में केवल व्यवसायिक शिक्षा ही दी जा रही है तथा संस्कार संबंधि शिक्षा या ज्ञान विलुप्त हो गया है। इसलिये हम सभी को चाहिए कि बच्चों को घर-परिवार में संस्कार अवश्य बताए। बाहरी वातावरण के हानिकारक प्रभावों से भी बच्चों को वंचित रखने का प्रयास करें। अपने आचरण और व्यवहार से ही हम अपने घर-गृह को स्वर्ग या नर्क में परिवर्तित कर सकते हैंइस अवसर पर रेल्वे स्टेशन अकलतरा, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र अकलतरा, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बलौदा एवं ज़िला चिकित्सालय में कुल 637 महिलाओं को साड़ी, फल, दूध एवं ब्रेड टेशन परिसर में ब्रेड एवं फल वितरण किया