



कृतिकार की कृति में अलौकिक संस्कृति और संभ्यता तथा कल और आज का सुंदर समन्वय है – डा. विनय कुमार पाठक, अवसर था सीमा भट्टाचार्य के काव्य संग्रह के विमोचन का, 14 जुलाई को हुआ कार्यक्रम
शक्ति छत्तीसगढ़ से कन्हैया गोयल की खबर
सकती- प्रयास प्रकाशन बिलासपुर द्वारा डॉ सीमा भट्टाचार्य वरिष्ठ कवयित्री एवं समीक्षक के काव्य संग्रह “ना जाने वह है कौन” का विमोचन एवं सम्मान समारोह का आयोजन समारोह- भूषण न्यायमूर्ति चंद्रभूषण बाजपेयी पूर्व न्यायाधीश छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की गौरवमयी उपस्थिति, डा. विनय कुमार पाठक कुलपति धावे विद्यापीठ गोपालगंज (बिहार) के प्रमुख आतिथ्य, डॉ श्यामलाल निराला प्राचार्य जे.पी. वर्मा कला एवं वाणिज्य स्नाकोत्तर महाविद्यालय की अध्यक्षता, डॉ आरती पाठक कालिंदी कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय और प्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ ऋषभ जैन दुर्ग के विशेष आतिथ्य में जे.पी. वर्मा शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय बिलासपुर के सभागार में संपन्न हुआ, कार्यक्रम की शुरुवात मां शारदे के तेल चित्र पर दीप प्रज्वलन का किया गया, कृति विमोचन पश्चात अपनी कृति के संदर्भ में बात रखते हुए कृतीकार डा. सीमा भट्टाचार्य ने कहा कि इस कृति को लिखने की प्रेरणा मुझे मेरे गुरुजनों ने दी, साथ ही पाठको के अपार स्नेह ने मुझे लिखने हेतु प्रेरित किया, और मैं लिखती गई, उन्होंने सभी लोगो का जिनका प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष सहयोग मिला उनके प्रति आभार प्रकट भी किया, समारोह भूषण न्यायमूर्ति वाजपेई ने कृतिकार के सौंदर्यपक्ष पर सार्थक समीक्षा करते हुए उनकी संस्कृतनिष्ठ भाषा की प्रशंसा की और कृतिकार को काव्य लेखन के लिए बधाई प्रेषित की, मुख्य अभ्यागत डा. विनय कुमार पाठक ने कहां की मूलतः कवयित्री का यह प्रतिनिधि संग्रह जीवन दर्शन की विवेचना करती है, जिसमे लौकिक व अलौकिक संस्कृति और संभ्यता तथा कल और आज का सुंदर समन्वय है, उन्होंने आगे कहा की एक शिक्षिका के नाते इनकी “सुबह सुबह” और “स्वर्ण स्वर” शीर्षक कविताएं इस दृष्टि से उल्लेखनीय बन पड़ी है, अध्यक्षता कर रहे डा. श्यामलाल निराला ने जहां बिलासपुर की देन के रूप में कवयित्री का स्वागत किया वही उनकी कुछ कविताओं पर टिप्पणी करते हुए उन्हे संभावनाओं के साहित्यकार के रूप में उल्लिखित किया, डॉ आरती पाठक ने सार्थक समीक्षा करते हुए जहां ” ना जाने वह है कौन” को महत्वपूर्ण संग्रह निरूपित किया वही संस्कृत की अध्यापिका की संस्कृतनिष्ठ भाषा को उल्लेखनीय निरूपित किया, डॉ ऋषभ जैन दुर्ग ने व्यंग अंदाज में कवयित्री और उनकी कृति पर विवेचना करते हुए उन्हें बधाई दी और आगे इसी तरह और भी रचनाएं लिखने की कामना की। कार्यक्रम का सफल संचालन डा. रश्मि द्विवेदी ने एवं आभार डा. अरुण कुमार यदु ने किया। इस अवसर पर महेश श्रीवास, शांतनु घोष, शाश्वती घोष, जयश्री नायर, बालमुकुंद श्रीवास, ममता शुक्ला, डा. सीमा श्रीवास्तव, माया शुक्ला, श्री शांदीपन चटर्जी, शीतल पाटनवार, विष्णु तिवारी, शुभा भौमिक, संतोष शर्मा, आनंद कश्यप, डा. संगीता बनाफर, आशीष श्रीवास, शत्रुजन जैसवानी, सुरेश दिवाकर, डा. अभिनेष जैन, बी पी बंजारे, एवं नगर के साहित्यप्रेमी विशेष रूप से उपस्थित थे