शक्ति में दुबलधनिया परिवार की चल रही श्रीमद् भागवत कथा में दूसरे दिन अतुल कृष्ण भारद्वाज जी ने कराया कथा रसपान, श्रोताओं की उमड़ रही भारी भीड़, परम पूज्य अतुल जी ने कहा- कलयुग में भगवान की भक्ति से ही परमात्मा की होगी प्राप्ति, ईश्वर की भक्ति में लगाए मन, दूर-दूर से कथा श्रवण करने पहुंच रहे धर्म प्रेमी



शक्ति में दुबलधनिया परिवार की चल रही श्रीमद् भागवत कथा में दूसरे दिन अतुल कृष्ण भारद्वाज जी ने कराया कथा रसपान, श्रोताओं की उमड़ रही भारी भीड़
शक्ति छत्तीसगढ़ से कन्हैया गोयल की खबर
सक्ति- शक्ति शहर के हटरी चौक स्टेट शुभम ग्रीन्स में 17 सितंबर से दुबलधनिया परिवार द्वारा पितृ मोक्षार्थ गया श्राद्ध अंतर्गत श्रीमद् भागवत कथा करवाई जा रही है, कथा के दूसरे दिन 18 सितंबर को व्यास पीठ पर विराजमान होकर परम पूज्य अतुल कृष्ण जी भारद्वाज ने अपने मुखारविंद से कथा का रसपान कराया, कथा व्यास पूज्य श्री अतुल कृष्ण भारद्वाज जी महाराज ने बताया कि जन्म लेना और मृत्यू होना मनुष्य के जीवन में अति दो सबसे बड़े दुख हैं। मनुष्य का जन्म बड़े दुखों के साथ होता है और मृत्यु भी दुख ही करती है, फिर भी मनुष्य यह जानते हुए संसार में सुख और आन्नद की तलाश करते हैं। वास्तव में उसने अपने जीवन का लक्ष्य कभी परमात्मा को बनाया ही नहीं
परम पूज्य अतुल कृष्ण जी भारद्वाज ने कहा कि कथा श्रवण कर यदि मनुष्य आत्म चिन्तन कर उस पर अमल करे तो जीवन का अर्थ ही बदल जायेगा। श्रीमद् भागवत कथा में पूज्य कथा व्यास अतुल कृष्ण भारद्वाज जी महाराज ने श्रृद्वालु जनों को कथा पान कराते हुए बताया कि आज मनुष्य अपने लक्ष्य से भटक गया है, अच्छी नौकरी, व्यवसाय करना ही जीवन का लक्ष्य ही नहीं है, परिवार का पालन यह सब उसके कर्म व कर्तव्य है, लेकिन उसका लक्ष्य नहीं हो सकता है, उसका लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति का होना चाहिए। कर्म सारे शरीर को करने हैं, उसे करते रहना चाहिए। शरीर का सम्बन्ध संसार के साथ होता है,और आत्मा का सम्बन्ध परमात्मा के साथ। मृत्यु होने पर शरीर संसार में ही नष्ट हो जाता है, शरीर के रिश्ते केवल संसार तक ही सीमित हैं और आत्मा को परमात्मा अपने साथ ले जाते हैं। जीवन के लक्ष्य केवल परमात्मा की प्राप्ति का होना चाहिए और संसार में रहते हुए शरीर से जो भी कार्य हो रहे हो, वह परमात्मा का मानकर करते रहना चाहिए। श्री अतुल कृष्ण भारद्वाज जी महाराज ने बताया कि कलयुग में भगवान को पाने का सबसे अच्छा तरीका है, सतयुग में तप से, त्रेतायुग में जप और ध्यान से पाया जा सकता था, लेकिन कलयुग में तो भगवान की भक्ति से ही परमात्मा को पाया जा सकता है और यह भक्ति बिना राधा रानी के प्राप्त होने वाली नहीं है। जो निस्वार्थ भाव से भगवान की भक्ति करता है, उसे राधा रानी की कृपा प्राप्त होती है- उन्होने ने कहा है कि कलयुग में मनुष्य जितना भी ध्यान लगा ले, लेकिन ध्यान लगने वाला नहीं है, इसीलिए ध्यान लगाने बजाए वह जीवन में ध्यान से चलता रहे, तो अच्छा है। संसार में रहते हुए वह बुद्धि मन से योगी हो जाए और चित्त में भगवान को उतार ले क्योंकि बुद्धि कभी स्थिर नहीं रहती, वह मन के आदेश पर चलती है। मन और बुद्धि ने मान लिया और बुद्धि ने कहा मन ने मान लिया लेकिन यह चित्त में उतार लिया, तो फिल् भगवान की भक्ति प्राप्त हो जायेगी। इस चित्त को कोई संत सत्संग अथवा जीवन में गुरू आ जाए, तो वह भगवान की ओर लगा देते हैं, बिना गुरू के सम्भव नहीं है. अर्थात जीवन में सदगुरू की बड़ी भूमिका होती है
दुबलधनिया परिवार की चल रही श्रीमद् भागवत कथा को सफल बनाने में पूरे परिवार जन जुटे हुए हैं एवं छत्तीसगढ़ सहित विभिन्न राज्यों से संबंधित रिश्तेदार भी प्रतिदिन पहुंच रहे हैं एवं श्रीमद् भागवत कथा श्रवण के लिए आयोजक परिवार द्वारा सुंदर व्यवस्था की गई है तथा भागवत कथा के दौरान भजनों की प्रस्तुति पर भी आगंतुक श्रोता मंत्रमुग्ध होकर झूमते गाते कथा का आनंद ले रहे हैं तो वहीं आयोजक परिवार की महिलाएं एवं बच्चे भी कथा के विभिन्न प्रसंगों पर सुंदर नृत्य के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त कर रहे हैं