अयोध्या के कार सेवक स्व.त्रिवेणी प्रसाद गबेल के सुपुत्र पंकज गबेल ने कहा- राम मन्दिर मुक्ति संग्राम और मेरा परिवार, पूरे देशवासी मनाएं रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को उल्लास के साथ
शक्ति छत्तीसगढ़ से कन्हैया गोयल की खबर
सक्ति-राम मन्दिर मुक्ति संग्राम की रूप रेखा 1984 में विश्व हिंदू परिषद् द्वारा रखी गई थी,इसी क्रम में सर्व प्रथम कलश यात्रा संपूर्ण भारत वर्ष मे आयोजित की गई। जो पूरे देश में दो लाख से अधिक ग्राम व नगरों से गुजरी। इस कलश यात्रा में शामिल होने का सौभाग्य हमारे परिवार को प्राप्त है। मेरी माँ ने चार कलश खरीदे थे जिसमे दो अयोध्या भेजे गये और दो कलश हमारे पूजा स्थल मे स्थापित है। कुछ दिनों पूर्व मध्य भारत के क्षेत्र सह सेवा प्रमुख प्रचारक मां. ओम प्रकाश सिसोदिया जी,सहप्रांत प्रचारक मान. नामदेव जी, माननीय बाबू लाल जी,मा.अजीत जी, टिकमजी, मनोज जी, भाई ओम प्रकाश राठौर जी का आगमन निज निवास मे हुआ था, उपरोक्त जानकारी देते हुए अयोध्या के कार सेवक शक्ति के स्वर्गीय त्रिवेणी प्रसाद गबेल के सुपुत्र स्वयंसेवक पंकज गबेल ने बताया कि इस अवसर पर मान. ओम प्रकाश जी द्वारा उन दो पवित्र कलशो को पहचान लिया गयाजिससेमाँ अत्यंत प्रसन्न हुई।1990 मे राम शिला पूजन आयोजन का निर्णय लिया गया
पंकज ने कहा कि तब पूरे भारत वर्ष मे 275000 ग्रामो से रामशिला घुमाई गयी,जब रामशिला शक्ति आई तब हमारे परिवार द्वारा इसकी चिर स्थाई स्मरण रहे इसके लिए मेरे दादा जी स्व श्री ठन्डाराम जी के द्वारा विशेष रूप से सात राम नाम अंकित ईंट बनवाई गई। जिसमे दो ईंट को अयोध्या भेजा गया। और बाकी के चार इंटे हमारे द्वारा निर्मित तीन भवनों के नींव में रखा गया था,1991आते आते राम जन्म मुक्ति आंदोलन चरम पर था,उसी दौरान की एक घटना स्मरण में है,1991के कार सेवा के लिए जन जागरण sakti मे हो रहा था,उस समय लगने वाली शाखा का मै एक स्वमसेवक् हू।तब उस कारसेवा के लिए दीवाल लेखन के लिए माननिय शिव कुमार साहू विस्तार शक्ति द्वारा कुछ स्वंमसेवको को चुना गया। जिसमे मुझे भी शामिल किया गया था,हमारी टोली पूरे शक्ति में दीवार लेखन कर रही थी। हम पूरे उत्साह से कार्य कर रहे थे इसी दौरान एक घटना हुई जो मेरे मानस पटल पर अंकित है।घटना इस प्रकार से थी,नगर के नागरिक श्री टेकचंद जायसवाल जी का निवास सक्ति के मुख्य मार्ग में स्थित था और उनका मकान उज्ज्वल श्वेत रंग से पूता हुआ था। उनका मकान श्वेत रंग से दमक रहा था,मेरी आयु उस समय 13 वर्ष के आस पास थी*
मेरे साथ तीन तरुण स्वमसेवक थे। हमने उनकी दीवार को कार सेवा आयोजन संबंधी उद्घोषों और लेखो से रंग दिया।
यदि किसी के नये नये पूते साफ सुथरे श्वेत दीवारो को रंगना क्या सही है। इस बात को ध्यान न दे के, प्रभु श्रीराम के काज मे मस्त हो कर हमने पूरे मनोयोग से श्री जाय सवाल जी की दीवार को राम नाम से रंग दिया। बाद में हमे श्री टेक चंद जी के आक्रोश का सामना करना पड़ा था। और हमे उनके द्वारा सम झाइस भी दी गई थी,लेकिन राम नाम के धुन में वो डाँट हमे दूध भात लगी।इसे बाद 1992का दौर आया तब हमारे कुटुंब के प्रमुख मेरे पिता जी स्व श्री त्रिवेणी प्रसाद जी के द्वारा कार सेवा में जाने का निर्णय लिया गया। पिता जी अयोध्या मे माननीय श्री विनय कटियार जी के आथित्य मे रहे । अयोध्या में वरिष्ठ कार्य कर्ताओ के साथ सरयू नदी में स्नान ध्यान किया। बाबरी ढांचे के विध्वंश के सहभागी और साक्षी हुए।पिता जी ने इस 500वर्षो के मुक्ति यज्ञ के कुछ अवशेष जिसमें ढांचे के ईट व कांटा तार साथ मे लाये थे जो स्मरण स्वरूप आज भी हमारे पूजा स्थल मे रखा हैपिता जी इसी क्रम में 2002मे अनेक वर्षो से रखी राम शिला का महंत राम चंद्र परमहंस द्वारा मां स्व अटल बिहारी बाजपेयी जी के विशेष अधिकारी व् दूत वरिष्ठ ias शत्रुघ्न सिंह को पवित्र पहली शिला को सौपा गया। तब इस घटना के साक्षी बनने का सौभाग्य भी मेरे स्व पिता जी को प्राप्त हुआ था।